The Adult King

सभी पाठकों को मेरा नमस्कार । किसी के पूछने या सोचने से पहले ही बता दूँ की यह एक सच्ची कहानी है और लोग चाहे कितने भी हैरान क्यों ना हो, बंद कमरे में क्या होता है, किसके साथ होता है, ये दुनिया कभी नहीं जान पाएगी। और ये पूरी दुनिया ही एक्टिंग कर रही है ।
खैर, मेरा नाम आभा प्रसाद है। नाम थोड़े बहुत बदले हुए हैं लेकिन फिर भी असल नाम के आस पास ही हैं ताकि हमारी इज़्ज़त भी बनी रहे और सबका मज़ा भी । वैसे तो मैं बिहार के एक छोटे से गांव से हूँ लेकिन पिछले कुछ दशकों से दिल्ली में रह रही हूँ । मेरे 3 बेटे और 1 बेटी है। अभिषेक, अखिल, आरती, अभिनव (बड़े से छोटे के क्रम में)। मेरे बच्चों के नाम भी हमने “अ” से ही रखें हैं क्यूंकि मेरे पति का नाम भी “अ” से ही था, अलोक प्रसाद ।
लॉकडाउन के दौरान अकेली बैठ बैठ कर बोर होती थी तो अन्तर्वासना और देसी कहानी में चुदाई की कहानियाँ पढ़ने लगी। एक लेखिका से बात की तो पता चला की परिवार में चुदाई एक आम बात है और इसमें शर्माने की कोई बात नहीं। तो मैंने भी सोचा क्यों ना अपने जीवन की इस सुन्दर घटना को दुनिया को भी सुनाई जाए। इस कहानी को लिखने के लिए मैंने यूट्यूब से टाइप करना सीखा और कुछ लोगों से मदद भी ली ।
अब कहानी पे आते है। लेकिन रोमांच से पहले भूमिका को समझना भी ज़रूरी है । चलिए शुरू करते हैं ।
मेरी शादी 1991 में मेरे पति आलोक जी से हुयी। उस वक़्त मैं 18 साल की थी और आलोक 21 के। गांव में होने के कारण मैंने बारहवीं तक की पढ़ाई की और आलोक जी ने पास के शहर से स्नातक की पढ़ाई की थी। और गांव के लोगो की उस वक़्त ये सोच थी की लड़की की शादी जल्द से जल्द करवा दो और लड़के की शादी बिना नौकरी के करवा दो, शादी हो जायेगी तो ज़िम्मेदारियाँ संभाल लेंगे। लेकिन मैंने अपने पिता से विनती की थी की मुझे कम से कम बारहवीं पढ़ने दें और आलोक जी के घरवाले भी थोड़े से ऊँचे विचार के थे ।
हमारी शादी हुयी। उस वक़्त आलोक जी गांव के ही पंचायत ऑफिस में काम करते थे। एक साल के अंदर ही हमारा पहला बच्चा अभिनव हो गया। होना ही था क्यूंकि गांव में मनोरंजन का कोई और साधन नहीं तो मैं और मेरे पति हर रात एक दूसरे के जिस्म से लिपटे रहते थे। वो मुझे बहुत प्यार से चोदते थे ।
आलोक जी के कुछ मित्र सिविल सेवा परीक्षा की तैय्यारी के लिए दिल्ली में थे। तो उन्होंने मुझसे और सास-ससुर से दिल्ली जाकर तैय्यारी करने की इच्छा ज़ाहिर की। तो ससुर जी ने उन्हें कहा के वे बेफिक्र जाए और उनके पढ़ाई और रहने का खर्च वो दो साल तक देंगे ।
पहले तो ये सवाल उठा की वो अकेले जाएंगे तो वहाँ रहने और खाने का कैसे हो पायेगा? तो मैंने ही उनसे कहा की मैं चलूंगी उनके साथ, वरना वे घर के काम और खाना बनाने में उलझ जाएंगे ।
काफी विचार-विमर्श के बाद सब राज़ी हो गए और तय हुआ की अभिषेक दादा-दादी के पास रहेगा और जब सब कुछ सेट हो जाएगा तो वो भी आ जाएगा दिल्ली। सच कहूं तो मैं अपने पति के बिना रह नहीं सकती थी। मैं उनसे बहुत प्यार करती थी (आज भी सच्चा प्यार उन्ही से करती हूँ) और वो भी मुझे बहुत प्यार करते थे। उनके बिना रहना मुमकिन नहीं था ।
हम दिल्ली आ गए। दो साल तक आलोक जी ने काफी मेहनत की, बिलकुल ध्यान केंद्रित कर के पढ़ाई की। पहले प्रयास में नहीं हुआ। इसी दौरान मैंने भी पास के एक छोटे से कारखाने में नौकरी ले ली। आलोक जी के दूसरे प्रयास के दौरान में गर्भवती हो गयी। और दूसरे प्रयास में सिर्फ 6 अंकों से आलोक जी का सिलेक्शन रह गया ।
उनके 4 दोस्तों में से एक का निकल गया और बाकी जिनका नहीं निकला वो सारे गांव वापस चले गए। लेकिन अब घर से पैसे माँगना ठीक नहीं था। और मैं भी पेट से थी तो मुझे भी नौकरी छोड़नी ही पड़ती कुछ दिनों में। तो आलोक जी ने निर्णय लिया की वो घर ना जाकर दिल्ली में कपड़ो का कारोबार करेंगे ।
जो थोड़े बहुत पैसे थे हमारे पास, उनसे उन्होंने कारोबार शुरू किया। शुरुआत के दो साल थोड़ी बहुत कष्ट झेलनी पड़ी लेकिन धीरे धीरे कारोबार अच्छा जमने लगा। इसी बीच मेरे दूसरे बेटे,अखिल, का जन्म हुआ। कुछ दिनों के बाद हमने एक प्लॉट ली और एक आलीशान घर बनवाया और अभिषेक को भी अब गांव से दिल्ली बुला लिया ।
एक दो सालों के अंतराल में आरती और अभिनव का भी जन्म हुआ। मेरे 4 बच्चे मेरे पति के ही प्यार की निशानी है। ऐसी कोई ज़रूरत नहीं थी जो आलोक जी ने पूरी नहीं की हो। लेकिन उनका प्यार और साथ मेरे लिए काफी था। उनके अलावा में और किसी मर्द को नहीं पहचानती थी ।
लेकिन ख़ुशी के बाद दुःख की घड़ी भी आती है। बच्चे बड़े हो रहे थे, कारोबार बढ़ रहा था, जनवरी (2004) का पहला हफ्ता था, कड़ाके की ठंड और आलोक जी को बिलकुल सुबह माल की डिलीवरी लेने के लिए जाना था। लेकिन कोल्ड स्ट्रोक लगने की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी। हमारा हँसता खेलता परिवार बिलकुल उजड़ गया ।
मैंने खुद को अपने मन में ज़ोर लाकर संभाला क्यूंकि बच्चे अभी भी छोटे थे और दिल्ली शहर में 4 बच्चों को पालना मुश्किल था। और कारोबार अच्छा खासा बड़ा हो गया था। उसे यूँ ही छोड़ के भागना मुश्किल था। मैंने ससुरजी और सासुमा से कहा के वो यहाँ आ जाएंगे तो बहुत मदद हो जायेगी। वो दोनों मान गए और गांव की खेती ठेके पे देकर दिल्ली आ गए ।
अब मैं कारोबार संभालने लगी क्यूंकि आलोक जी बताते रहते थे। और मेरे ससुरजी मेरी मदद करते थे, क्यूंकि में हिसाब किताब में थोड़ी कच्ची थी। सासुमा बच्चों का देख भाल करती ।
सब कुछ अब नार्मल चल रहा था। आलोक जी की हर दिन याद आती। उनको गए अब करीबन डेढ़-पौने दो साल होने को आये। इतने दिनों बाद अब मेरी चुत चुदाई की मांग करने लगी। हर रात आलोक जी को याद करती और चुत रगड़ के, दूदू दबाके, अपनी पानी निकल कर सो जाती। धीरे धीरे चाहत बढ़ने लगी, कभी मूली, कभी खीरा, कभी केला घुसाने लगी अपनी चुत में ।
आग इतनी बढ़ गयी, की मैंने वो करना शुरू कर दिया जो मैंने कल्पना भी नहीं की होगी। मैं अपने ऑफिस के एक कर्मचारी से चुदने लगी। और उससे चुदने के बाद उसे 500 रुपये देती थी। मेरे ससुरजी जब हिसाब मिलाते तो हर दूसरे-तीसरे दिन 500 रुपये गायब रहता ।
मुझे बस अपनी चुत की जलन शांत करनी थी । एक दिन ससुरजी को हल्का बुखार था तो उन्होंने कहा वो आज नहीं जा पाएंगे मेरे साथ। मैं जाते ही कर्मचारी को अपने केबिन में बुला कर चुदने लगी। अचानक किसी ने गेट खोला और हम हड़बड़ा गए। मैंने देखा तो ससुरजी थे। उन्होंने कुछ नहीं बोला और वो चले गए। मैं भी जल्दी से कपड़े ठीक करने लगी और कर्मचारी जल्द ही कमरे से बाहर निकल गया। उसके जाते ही ससुरजी अंदर आये। मैंने उनसे माफ़ी मांगी तो उन्होंने मेरे सर पर हाँथ रख कर कहा “कोई बात नहीं बेटा, घर पर करेंगे बात!”।
वो बिलकुल नार्मल थे और फिर किसी तरह काम ख़तम करके हम जल्दी घर आ गए। मैंने सासुमाँ से कहा की आज आप बच्चों को खाना खिलाके सुला दीजिये, मेरी तबियत ख़राब है, मैं ज़रा आराम करुँगी। और मैं अपने कमरे में चली गयी और रोते हुए सो गयी। शायद मुझे खुद पे घिन्न आ रही थी ।
रात के करीबन 9 बजे मेरे कमरे के दरवाज़े पे खटखट हुयी, मैंने अंदर आने को कहा। सासुमाँ और ससुरजी हम तीनों के लिए चाय लेकर आये थे। उन्होंने अंदर आते ही गेट बंद कर दी। ससुरजी सोफे पर बैठ गए। सासुमाँ एक कप मुझे दी और मेरे पास आकर बैठी ।
सासुमाँ ने कहा, “बेटा, इन्होने मुझे सब बताया। और मैं भी कई रातों से देख रहीं हूँ तुझे सब्ज़ी अपने कमरे में ले आते हुए। और ये बता रहे थे की कई दिनों से 500 रुपये की गड़बड़ी होती है और तू शांत रहती है। और आज जो तू उस कर्मचारी के साथ कर रही थी ।”
इतने में मैं रो पड़ी। तो ससुरजी ने कहा, “बेटा, तू दुबारा शादी कर ले। इस उम्र में एक औरत को एक आदमी का साथ चाहिए होता है और हम तेरी पीड़ा समझ रहे हैं बेटा। तू बहुत मज़बूत है। वरना औरतें पति के मरने के बाद टूट जाती हैं। तूने हिम्मत नहीं हारी। बच्चों की परवरिश, इतना बड़ा कारोबार संभालना, वो भी अपनी ख़ुशी को त्याग कर के, छोटी बात नहीं है बेटा ।
सासुमाँ ने कहा, “हाँ बेटा, तू करले किसी से शादी। हम करवाएंगे। बेटे के मरने के बाद भी तू हमें मान रही है, इससे बड़ी बात कुछ नहीं। ईश्वर ने हमसे बेटा छीन लिया लेकिन इतनी अच्छी बेटी दी है और इतने सुन्दर सुन्दर पोता-पोती ।”
इतने में मैंने कहा, “माजी-बाबूजी, मैंने सिर्फ एक व्यक्ति से प्यार की है, वो हैं आलोक जी। उनके अलावा मेरा और कोई नहीं। उनके दिए हुए बच्चे और माँ-बाप। बस, यही मेरी दुनिया है। मैं शादी कर भी लूँ, तो आप दोनों से दूर हो जाउंगी ।
क्या पता जिससे शादी हो वो बच्चों को ना प्यार करे, किस तरह से मुझसे व्यवहार करे? नहीं पता। आज जो भी बाबूजी ने देखा, वो बस शरीर के परेशानी को शांत करने के लिए था। मेरा कोई भी मन लगाव नहीं है किसी से और ना कभी हो पायेगा। मेरी दुनिया बस मेरे 4 बच्चे और आप दोनों हो ।”
“ठीक है बेटा, तू भी हमारा ही बच्चा है। तुझे जैसा ठीक लगे। तू कर्मचारी से चलते रहने दे, पर सब्ज़ियों को इस्तेमाल मत कर। सेहत के लिए ठीक नहीं।”, ये कह कर वो हंस पड़ी और मुझे गले लगाकर आशीर्वाद देकर दोनों चले गए ।
दिन बीतते गए। अब एक और कर्मचारी था जो मुझे चोदता था। पुराने वाला अब 800 लेता था और नए वाला 500। पर मैं हफ्ते में बस दो दिन ही चुदती थी ।
कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था, हर कुछ अब अपने आप होने लगा था। मैं और ससुरजी बस हिसाब किताब लेने जाते। बाकी काम सारे कर्मचारी करते। इसी बीच मैंने एक किट्टी ज्वाइन की क्यूंकि घर में बोरियत सी लगती। इतने सालो में पहली बार कुछ सहेलियां बनी ।
बच्चे बड़े हो रहे थे, सासुमाँ की तबियत अब थोड़ी ख़राब रहने लगी थी। और एक दिन हार्ट अटैक से सासुमाँ का देहांत हो गया। और एक साल के अंदर ही ससुरजी का भी देहांत हो गया और हम सब फिर अकेले हो गए। ये बात 2009-10 की है ।
पैसे की कमी बिलकुल नहीं थी। कारोबार से महीने के 15-20 लाख आ जाते। गांव के खेतो से साल का 5-6 लाख। दिल्ली में ये 2 कड़ोड़ का घर और एक और पास में प्लॉट। लेकिन कमी थी मेरे लिए ख़ुशी की ।
अब आगे वो कहानी शुरू होगी जो यहाँ पाठक पढ़ने आते हैं, रोमांच की कहानी, जो जल्दी ही आएगी अगले भाग में ।
अभिषेक अब 18 का हो गया था और बारहवीं पास कर ली थी। अच्छे नंबर से ही पास हुआ था और दिल्ली के किसी भी अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल जाता। लेकिन उसके सपने कुछ अलग थे। एक दिन मैं और मेरे चारों बच्चे अभिषेक के कॉलेज के विषय में ही बात कर रहे थे ।
तो इतने में अभिषेक ने कहा, “माँ, मैं सोच रहा हूँ की मैं किसी छोटे मोटे कॉलेज में ही एडमिशन ले लेता हूँ ।”
तो मैंने उससे सवाल किया, “क्यों बेटु? तेरे इतने अच्छे मार्क्स आयें हैं। अच्छे कॉलेज में ले एडमिशन तो नौकरी भी अच्छी मिलेगी। अगर कहीं पैसे देने होंगे तो बता, है पैसे, दे दूंगी। ” मैं अपने तीन बेटो को बेटु कहकर ही पुकारती थी और बेटी को छोटी ।
तो अभिषेक ने कहा, “नहीं माँ, ऐसा कुछ भी नहीं। पापा ने इतना बड़ा बिज़नेस बनाया, आपने अपनी खुशियां छोड़ कर इस परिवार को और बिज़नेस को इतना आगे बढ़ाया, दादू ने भी गांव से आकर इस बिज़नेस के लिए इतना कुछ किया। मैं चाहता हूँ आप लोगों से एक कदम और आगे जाऊँ। मैं चाहता हूँ की इसे एक ब्रांड बनाऊं और सिर्फ दिल्ली में नहीं, पुरे इंडिया में कारोबार करूँ। अच्छे कॉलेज, अच्छे नौकरी से कितना मिलेगा, माँ? उससे कई गुना ज़्यादा तो हम यहाँ से बना सकते है ।
बात ठीक कर रहा था अभिषेक। तो पुरे परिवार ने ये निर्णय लिया की अभिषेक का दाखिला किसी छोटे से कॉलेज में करवा देंगे जहाँ पे हाजिरी को मैनेज किया जा सके और सिर्फ डिग्री ज़रूरी है। वही वक़्त वो कारोबार में देगा। बाकी बच्चे छोटे थे लेकिन उनकी भी बातें सुनना ज़रूरी था ।
मैं काफी खुश थी। मुझे अभिषेक में आलोक जी की परछाई दिखती है। कुछ नया करने की लालसा, रिस्क लेने की हिम्मत। वो आलोक जी जैसा ही दिखने में भी है काफी हद्द तक। बस, अपने पिता से ज़रा लम्बा है ।
लेकिन बस एक बात की चिंता थी। की अगर अभिषेक रोज़ ऑफिस चलेगा मेरे साथ तो मेरी जो चुदाई होती थी दोनों कर्मचारियों से, वो बाधित हो जायेगी। क्यूंकि इसके विषय में सासुमाँ-ससुरजी को पता था पर बच्चों को कैसे बताऊँ? लेकिन मैंने अपने इस सोच को दरकिनार किया क्यूंकि अब मुझे अपने बच्चों के ख़ुशी और भविष्य के बारे में सोचना था ।
अगले दिन से वो मेरे साथ ऑफिस आने लगा। और धीरे धीरे पूरा कारोबार समझने लगा। माल कहाँ से आता है, क्या रेट चल रहा है, पूरी विधि क्या है, कैसे इसे बढ़ा सकते हैं। क्या बदलने की ज़रूरत, क्या रख सकते हैं। एक-दो हफ्ते में मैं समझ गयी की अभिषेक बिलकुल अपने पापा जैसा है। उतना ही मेहनती और बुद्धिमान ।
इसी बीच मेरी चुत में खुजली होती, लेकिन मैं रगड़ के शांत कर देती। लेकिन काफी दिनों से किसी लौड़े के अंदर ना जाने से खुजली सिर्फ चुत रगड़ने से शांत नहीं हो रही थी। एक दिन मैं ऑफिस में थी और मन और शरीर बिलकुल अशांत था। बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था ।
मौका पाते ही मैंने कर्मचारी को इशारा किया बाथरूम में आने को। वो आ गया और मैं पैंटी उतार कर उसके सामने झुक गयी। उसने मेरे चुत में लंड डाल कर चोदना शुरू कर दिया। मैं आँखें बंद करके चुद रही थी की अचानक गेट खुली और आवाज़ आयी, “माँ ?”
डर के आँख खोली तो देखा अभिषेक मुझे गुस्से से देख रहा था। वो अचंभित भी था, गुस्से में भी था और उसका चेहरा बिलकुल लाल हो गया था। उसने ज़ोर से गेट बंद की और वहाँ से चला गया। मैं जल्दी से बाहर आ गयी। पुरे दिन उसने मुझसे बात नहीं की, मेरे पुकारने पर जवाब भी नहीं दे रहा था, घर वापस जाते वक़्त गाड़ी में चुपचाप रहा, घर पहुँचते ही अपने कमरे में चला गया और गेट बंद कर ली ।
मैंने उसे समझा और उसका गुस्सा जायज़ था। कोई भी अपनी माँ को किसी और से चुदवाती देख बर्दाश्त नहीं करेगा। मैंने उसे खाने पे बुलाने के लिए आरती को भेजा पर उसने कहा की उसका खाना उसके कमरे में ही दे दें। ये पहली बार था हम में से कोई भी खाना अपने रूम में मंगवाया हो। हमारे घर का नियम था, चाहे कुछ भी हो, कितनी भी परेशानी हो, खाना पूरा परिवार साथ में डाइनिंग टेबल पर बैठ कर ही खाएंगे ।
मैंने भी ज़ोर न देते हुए आरती के हांथों खाना भिजवा दिया। खाना लेकर अभिषेक ने रूम लॉक कर दिया। बाकी तीनों बच्चे आकर पूछने लगे की भैया को क्या हुआ, तो मैंने झूठ कह दिया की किसी कर्मचारी से झगड़ा हो गया भैया का और उसने भैया को माँ की गाली दे दी। अब कुछ गंभीर झूठ बोलना ज़रूरी था वरना बच्चे मानते नहीं क्यूंकि ऐसा पहली बार हुआ था ।
मैं भी बाकी बच्चों को सुला कर अपने कमरे में चली गयी। और जाते ही रोने लगी। मैं आलोक जी को कोसने लगी की क्यों वो मुझे छोड़ कर चले गए। आज वो यहाँ होते तो ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते। और रोते रोते मेरी आँख लग गयी ।
सुबह उठी, कामवाली ने नाश्ता बना दिया था और बच्चों को तैय्यार कर दिया था। मैंने अभिषेक के कमरे में देखा तो कमरा अभी भी बंद था। मैंने सोचा आज वो नहीं जाएगा। उसे रहने देती हूँ, जब उसका गुस्सा शांत होगा तो बात करुँगी। मैंने कामवाली से भी कहा की उस कमरे में आज सफाई रहने दे। मैं तैय्यार हुयी और गाड़ी में आकर बैठी तो देखा अभिषेक पहले से ही तैय्यार होकर बैठा था। मेरे ख़ुशी के मारे आँखों में पानी आ गया ।
मैंने उसके बालों को सहलाते हुए पूछा, “अरे, मेरा बेटु, तू यहाँ? नाश्ता किया की नहीं ?”
उसने बात नहीं की, बस ना में सर हिलाया और ड्राइवर को इशारा किया की गाड़ी बढाए। मैंने सोचा की ज़्यादा तंग ना करके बिज़नेस के बारे में बात करूँ। कुछ भी कहती या पूछती तो बस सर हिलता या फिर हम्म्म्म करता। वो मेरी तरफ देख नहीं रहा था। थोड़ा दुःख हो रहा था पर ख़ुशी भी थी की वो आ गया ।
पुरे दिन वो वैसे ही रहा। पर हम काम में व्यस्त हो गए और ध्यान नहीं रहा। मैंने दोपहर में ब्रेक लेकर उसे खाने को बुलाया तो उसने कर्मचारी से कह कर भिजवाया को उसे भूख नहीं है। वो अभी भी गुस्से में था और ये गुस्सा इतनी आसानी से निकलेगी भी नहीं ।
वैसे हमारे ऑफिस की छुट्टी 6 बजे होती है लेकिन 5 बजे सारे कर्मचारी जाने लगे। मैंने पूछा तो उन्होंने कहा की अभिषेक सर ने आज जल्दी छुट्टी दे दी है। दिन भी शनिवार का था तो सबके लिए ख़ुशी थी। पर मैं अब भी दुःखी थी, पछतावे में थी। हमारा ड्राइवर आया और बोला, “मैडम, अभिषेक बाबा गाड़ी में बैठ गए हैं, चलिए ।”
मैं कुछ समझी नहीं पर अपना सामान वगैरह समेट कर गाड़ी में बैठ गयी। मैं चाहती थी अभिषेक से पूछूं की आज जल्दी छुट्टी क्यों दे दी। पर वो गुस्से में ही था और मैंने भी चुप रहना ही ठीक समझा। और नहीं चाहती थी की ड्राइवर के सामने कुछ भी बातें हो ।
मैंने गाड़ी से बाहर देखा तो देखा की ड्राइवर ने घर वाला रास्ता नहीं लिया और ये कोई और जगह थी। शायद अभिषेक ने पहले ही बता दिया था ड्राइवर को ।
ड्राइवर ने एक पार्क के सामने गाड़ी रोकी। तभी अभिषेक ने कहा, “चलो, माँ”। कल दोपहर से लेकर अब तक में ये पहले शब्द थे जो अभिषेक के मुंह से निकला। और हम पार्क के अंदर आ गए, उसने वहाँ से दो कप चाय ली, एक खुद ली, एक मुझे दी। बात कुछ नहीं हो रही थी। मैं समझ नहीं पा रही थी पर चुप थी ।
फिर हम टहलने लगे। ये पार्क दिल्ली का काफी मशहूर और बड़ा पार्क है लेकिन काफी सुनसान रहता है। हम चाय पीते पीते काफी दूर चले और अंत में एक बिलकुल सुनसान से जगह पे एक खाली बेंच दिखी, जहाँ से कोई हमें देख नहीं पायेगा, वहाँ अभिषेक जाकर बैठ गया और मुझे भी इशारा किया बैठने को ।
हम दोनों बैठ गए और 5 मिनट तक बिलकुल चुप । अब ये मौन मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो मैंने ही कह दिया, “बेटु, मुझे माफ़ कर दो। मैं जानती हूँ तुम मुझसे बहुत गुस्सा हो। तुम्हारा गुस्सा जायज़ है। कोई भी अपनी माँ को ऐसे नहीं देख सकता, वो भी किसी और के साथ। मुझे पता है तुम्हें मुझे देख के भी शायद घिन्न आ रही होगी ।”
तो उसने बीच में काटते हुए कहाँ, “नहीं माँ, ऐसा नहीं है। आप मेरी माँ हो, घिन्न क्यों आएगी? हाँ, गुस्सा हूँ। पर इसकी क्या ज़रूरत पड़ गयी माँ? क्या पापा आपको प्यार नहीं करते थे ?”
जवाब देते हुए मैंने कहा, “बेटु, मैंने तुम्हारा पापा के अलावा आज तक किसी से प्यार नहीं किया। वो मेरे जान थे, मेरे सबकुछ थे। आज जो भी हैं हम, सब उनकी ही वजह से। उनके जाने के बाद मैंने किसी मर्द को अपना दिल नहीं दिया। पर हर इंसान की एक शारीरिक ज़रूरत भी होती है। मैंने बहुत कोशिश की घरेलु समाधान खोजने की, बस अशांत ही रहती थी, बेटा। तू भी अब बड़ा हो रहा है, तू भी समझेगा की इस शरीर को खाना, कपड़ा और नींद के अलावा भी कुछ चीज़ें चाहिए ।”
तो इतने में वो गुस्से में बोल पड़ा, “तो माँ शादी कर लेती दोबारा। किसी और के साथ घर बसा के करती ये सब। अपनी इज़्ज़त का तो लिहाज़ करो। शर्म नहीं आ रही ऑफिस के एक कर्मचारी से चु….. ” ये कहते कहते हुए वो रुक गया । इतने में मेरे आंसू निकल आयें। मैंने कहा, “बेटा मैं क्या करती? तू बता। किसी और से शादी करती तो आज क्या हमारे पास इतना घर-गाड़ी-पैसा होता? वो आदमी लूट कर चला जाता तो? या फिर मुझे मारता-पीटता तो? या फिर तुम बच्चों से बुरा व्यवहार करता तो? मैंने जो भी किया सिर्फ तुम चारों का सोच कर किया। और उससे भी ज़्यादा, मैंने सिर्फ एक इंसान से प्यार की है, तुम्हारे पापा से ।
उन्होंने मुझे तुम चारों को दिया, इतना बड़ा कारोबार बना कर दिया, तुम्हारे दादा-दादी जैसा परिवार दिया। मैं चाह के भी उन्हें धोखा नहीं दे सकती और इन कर्मचारियों से मेरा कोई दिल नहीं जुड़ा, ये बस मुझे सर्विस देते हैं और मैं इनको पैसे देती हूँ । “पर माँ…. ” ये कहकर वो फिर रुक गया। मैं उसके विडम्बना को समझ रही थी ।
“माजी और बाबूजी ने भी मुझे कहा था शादी करने और उन्होंने ने ही मुझे इजाज़त दी कर्मचारी से सम्भोग करते रहने को।”, मैंने उसे बताया । ये सुन वो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगा । “हाँ बेटा, तेरे दादा-दादी जानते थे। हाँ, मैंने पाप किया है। लेकिन मैंने तेरे पापा को धोखा नहीं दिया। वो जहाँ कहीं भी हैं, वो जानते हैं और वो मुझे समझेंगे। कोई मुझे समझे ना समझे, वो मुझे समझेंगे।” ये कहते ही मैं रो पड़ी। शायद अभिषेक की भी आँखें नम हो गयी थी ।
इतने में वो मेरे करीब आकर मुझे गले लगा लिया और मैं उसके सीने पे सर रखकर रोने लगी। पाँच मिनट तक हम ऐसे ही बैठे रहे। फिर उसने कहा, “मैं हूँ माँ, मैं समझूंगा तुझे ।”बिलकुल इस क्षण में मुझे जो हुआ, मुझे आजतक नहीं समझ आती की आखिर हुआ क्या था मुझे? जब उसने कहा “मैं समझूंगा तुझे”, मुझे आलोक जी की आवाज़ सुनाई दी। मैंने उसके सीने से सर उठाया, उसके चेहरे को हलके से पकड़ कर अपने पास खिंचा और उसके होंठों पे अपना होंठ रख दिया और अपने आँखे बंद कर ली। उसके होंठ मेरे होंठों पर ही थे पर उसके तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं थी ।
कुछ मिनटों के बाद, मैंने हलके हलके से उसके होंठ चूसना शुरू किया। अब वो भी मेरे चुम्बन का उतर दे रहा था। उसने धीरे से मेरे एक हाँथ में अपना हाँथ फसा लिया। मेरा दूसरा हाँथ उसके छाती पे आकर ठहरा तो वो बिलकुल ही तेज़ी से धकधक कर रहा था। मानो आवाज़ बाहर तक आ रही हो। मैंने महसूस किया की मेरा भी दिल काफी तेज़ी से धड़क रहा था। बिलकुल इसी अवस्था में हम 15 मिनट रहे ।
तभी मैंने ध्यान दिया की उसके पैंट में एक तम्बू सा बन गया है। मैंने अपनी चुम्बन तोड़ दी। कल दोपहर से अब ये पहली बार था जब हम दोनों की नज़रे मिली। हम दोनों की धड़कने तेज़ थी ।
मैंने उसका हाँथ पकड़ा और उसे खींचते हुए चल पड़ी। हम गाड़ी में आ गए और मैंने ड्राइवर को कहा की वो हमें वापस ऑफिस छोड़ दे, हमें एक मीटिंग की तैय्यारी करनी है। ऑफिस पहुँचते ही हम उतरे और मैंने ड्राइवर से कह दिया की वो गाड़ी घर पे लगा दे। वो गाड़ी लेकर चला गया। मैंने घर पे कॉल करके नौकरानी को कह दिया की बाकी बच्चों को सुला दे, हम किसी काम में फंसे हुए हैं, आने में देर होगी ।
ऑफिस के अंदर घुसते ही मैंने गेट को बाहर से लॉक कर दिया। अभिषेक के हाँथ पकड़ कर अपने केबिन में आ गयी और उसका गेट भी बंद कर दिया। गेट बंद करते ही मैं अभिषेक के तरफ मुड़ी और उसके होंठों को खींच कर अपने होंठो में फसा कर चूमने लगी। अब मेरा बेटा भी मेरा साथ दे रहा था। वो भी अब मुझे मेरे कमर से पकड़ कर चुम रहा था ।
अब शायद सही समय है मैं ज़रा अपने बारे में बता दूँ। जब मेरी शादी हुयी थी, उस वक़्त मेरे दूदू 32B थे, कमर सिर्फ 26 और नितम्ब 30 थे। मुझे आज भी याद है, जब मैं पहली बार आलोक जी के सामने अपने सुहागरात वाले दिन नंगी हुयी थी। वो मुझे देखते रह गए थे। मेरा रंग गोरे और सांवले के बीच का एक अलग सा रंग है जो कुछ लोगों को काफी मोहित करता है। मेरा कद 5 फ़ीट 6 इंच का है ।
शादी के बाद मैंने काफी मेन्टेन करने की कोशिश की लेकिन कारोबार बढ़ने के बाद थोड़ी सी वज़न बढ़ गयी थी। लेकिन आलोक जी के जाने के बाद मैं मुरझा गयी थी और 2010-11 में दूदू 34C, कमर 30 और नितम्ब 30 था। तो कुल मिला कर 36-37 के उम्र में मैं काफी जवान दिखती थी। मेरा पेट आज भी बिलकुल सपाट है। ये मेरे लिए भी आश्चर्य की बात है की इस पेट में मैंने 4 बच्चों को पाला है पर पेट में बस एक हलकी सी ही स्ट्रेच मार्क है ।
वैसे मैं साधारण तरीके के ही कपड़े पहनती हूँ, ज़्यादा चमक धमक वाले कपड़े पसंद नहीं, लेकिन क्यूंकि अपना कारोबार भी कपड़ो का ही था और मेरे पति पढ़े लिखे थे, वो मुझे हमेशा अच्छे पोषक पहनने को कहते थे। मैं कांजीवरम साड़ी ही पहनती हूँ, कभी-कभार जीन्स और शर्ट, पति के जाने के बाद मैंने बिज़नेस सूट पेहेनना शुरू कर दिया था। मेक-अप का कुछ ख़ास शौक़ नहीं था। बस एक हलके रंग की लिपस्टिक लगाती थी ताकि होंठ रूखे न लगे ।
मैं बारहवीं पास ही थी पर मेरे रहने के रंग-ढंग से कोई कह नहीं सकता। मुझे देख के हर कोई कहेगा की मैंने शायद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एम०बी०ए० की हो। मुझे व्यक्तिगत तौर पर ऐसे कॉर्पोरेट लुक में रहना अच्छा लगता था। आलोक जी जब थे, वो मुझे भी पढ़ाते, मेरी भाषा काफी साफ़ की उन्होंने। मेरी बस अंग्रेजी थोड़ी कमज़ोर रह गयी ।
मेरे केबिन में एक बड़ा सा टेबल था। चूमते चूमते मैंने उसे टेबल के तरफ धक्का दिया और वो टेबल पे बैठ गया। इस वक़्त मुझे सही और गलत का कोई फासला नहीं दिख रहा था । मैंने उसके आँखों में देखते हुए निचे झुकी और और उसके पैंट का ज़िप निचे करके उसके लंड को निकला। और उसके लंड को देखते ही मैं हैरान रह गयी। मैं सच में अपने आँखों से जो देख रही थी वो विश्वास नहीं कर पा रही थी। अभिषेक के लंड का आकार, टोपे का आकर, लम्बाई, गोलाई, सब कुछ, बिलकुल आलोक जी के लंड जितना था। ऐसा लग रहा था मेरे पति, मेरा प्यार वापस आ गया है ।
मैंने एक क्षण भी देरी ना करते हुए पुरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी और अभिषेक सिसकारियां लेने लगा। बिलकुल धीमी आवाज़ में “आह आअह, ओह्ह उह, ओह, आह” करने लगा। मैं बस बिना कुछ कहे चूसे जा रही थी । मेरे पति के मृत्यु के बाद ये पहली बार था जब मैं लंड अपने मुंह में ले रही थी। कर्मचारियों को बस चुत खोल के खड़ी हो जाती थी। उनका कभी मुंह में नहीं लिया। मैं अपनी शारीरिक शांति के लिए उनसे चुदती थी, उन्हें मज़े देने के लिए नहीं ।
करीबन 5-6 मिनट चूसने के बाद अभिषेक ने अचानक मेरे सर को पकड़ लिया और उसका वीर्य काफी तेज़ी से मेरे मुंह में आया और वो झड़ गया। मैंने उसका सारा वीर्य अपने गले के अंदर उतार लिया । जब मैं उठी और उसे देखा तो वो बिलकुल पसीने से लथपथ था। ये शायद उसके लिए पहली बार था। मैंने अपनी साड़ी को खोला, और अपने ब्लाउज़ को जैसे खोला मेरा दूदू उछल कर बाहर निकल आया। उसके एक हाँथ को पकड़ कर मैंने अपने दाएं दूदू पे रख दिया और उसे आँखों ही आँखों में दबाने को कह दिया। वो धीरे धीरे मेरे दूदू को दबाने लगा और मैं फिर से उसके होंठों को चूमने लगी। और मैं अपने हाँथ से उसके लंड को सहलाने लगी ।
ना मैं कुछ कह रही थी, न वो कुछ कह रहा था। हम आँखों ही आँखों में बातें कर रहे थे। चुम्बन तोड़ कर मैंने उसका सर पकड़ कर अपने दूदू के तरफ खींच दिया और आँखों से इशारा कर दिया मेरी दूदू चूसने को। मेरा बेटु बिलकुल एक छोटे बाबू के तरह मेरे दूदू को चूसने लगा। मैं अभी उसके लंड से खेल रही थी। क्यूंकि वो अब भी जवान था, उसका लंड फिर से काफी जल्दी खड़ा हो गया ।
मुझे बस अब मेरे बेटु का प्यार चाहिए था। मेरे बस ऊपर के हिस्से खुले हुए थे। मैं अब ज़रा सा हट कर खड़ी हुयी और अपने साड़ी को उतारने लगी। मैंने अपना पेटीकोट उतरा और अपनी पैंटी भी उतार दी। और बिलकुल नंगी अपने बेटे के सामने खड़ी हो गयी ।
जब मैंने अपना चेहरा उठा कर अभिषेक को देखा, वो अचंभित होकर मुझे देख रहा था, बिलकुल उसी तरह जैसे उसके पापा ने मुझे पहली बार नंगी देखा था। मुझे लग रहा था मेरे आलोक वापस आ गए हैं। अभिषेक को देख मैं शर्मा गयी लेकिन अब मुझे बस अपने बेटु का लंड मेरे अंदर चाहिए था ।
मैं अपने टेबल पर चढ़ कर लेट गयी, अपने टांगो को फैलाते हुए अभिषेक को इशारा किया। वो खड़ा हुआ और टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गया। उसने अपने लंड को मेरी चुत पर लगाकर सेट करने की कोशिश की, तो मैंने उसके लंड को पकड़ कर अपने चुत में सेट कर के आँखे बंद कर ली, उसने धीरे धीरे अंदर डालने को ज़ोर लगाया ।
पार्क में चुम्बन करने के वक़्त से ही मेरी चुत गीली हो गयी थी। और मेरे पति और दोनों कर्मचारियों से चुदते हुए मेरा चुत ज़रा ढीला हो गया था। तो बेटु को ज़्यादा मुश्किल नहीं हुयी । पर सृष्टि भी क्या खूबसूरत चीज़ है। किसी भी नर को मादा के चुत तक पहुँचा दो, बस। उसके बाद वो खुद ही कर लेता है हर कुछ। जैसे ही चुत में अभिषेक का लंड घुसा, मेरे मुंह से ज़ोर से “आह” निकल गयी और मेरे आँखों में आंसू थे, ख़ुशी के आंसू ।
अब अभिषेक मुझे चोदने लगा। एक मर्द के तरह चोदने लगा। धक्के की तेज़ी बढ़ाने लगा। चोदते हुए वो कभी कभी मेरे दूदू को मसल देता और जब थकता तो झुक कर मेरे होंठो को चुम लेता । मैं बस सिसक सिसक कर आहें भर रही थी । अब वो काफी तेज़ चोदने लगा तो मैं समझ गयी वो झड़ने वाला है। मैंने आँखों से ही कह दिया की मैं पहली बार उसका अपने अंदर ही लेना चाहती हूँ। दो मिनट बाद वो झड़ गया और उसका सारा वीर्य मेरे अंदर गिर गया ।
हम दोनों थक गए थे और पसीने से लथपथ थे। वो मेरे पास आकर लेट गया, मुझे पीछे से लिपट कर सो गया । मेरी नींद उड़ गयी थी। मेरी ज़िन्दगी एक नयी मोड़ ले चुकी थी। मेरे आँखों में आंसू, थोड़े दर्द के, थोड़े ख़ुशी के, थोड़े प्यार के। अभिषेक का हाँथ मेरे पेट पर था। उसके लंड को अपने पीछे महसूस कर पा रही थी। उसके साँस की गरम हवा सीधे मेरे गले पर लग रही थी। मैं उसके हांथो को जकड़ कर सो गयी ।
करीबन साढ़े नौ बजे फ़ोन बजने पर हमारी नींद खुली। मैंने उठाया तो नौकरानी के फ़ोन से आरती का कॉल था। उसने पूछा की हम कहाँ हैं, तो मैंने बहाना करते हुए कहा की ऑफिस में काम में देरी हो गयी है, बस आते हैं । हम दोनों उठे, कपड़े पहने और एक टैक्सी में निकल पड़े। हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे थे। पर उसका हाँथ मेरे हाँथ में था। आलोक जी के जाने के बाद पहली बार महसूस हो रहा था, कोई मेरा साथी है मेरे साथ ।
उम्र चाहे कितनी भी हो उस वक़्त अभिषेक की, पर एक मर्द और एक औरत का मिलन किसी भी उम्र में हो सकता है। और पिछले कुछ दिनों से मैंने उसे भांप लिया था, वो भले ही अभी सिर्फ 19 साल का था, पर उसमे समझदारी काफी अधिक थी, काफी परिपक्व था, समय की नज़ाकत, रिश्तों की एहमियत समझता था ।
अगर वो मेरी एहमियत नहीं समझता तो मेरे दर्द को नहीं समझता, भले ही गुस्से में था सुबह तक, पर खुद से बात करने की पहल नहीं करता और मुझे नहीं समझता। और अपने बेटे से, अपने संतान से तो प्यार करती ही थी, लेकिन अब उसे एक मर्द के रूप में प्यार कर बैठी थी। उसके तौर तरीके बिलकुल आलोक जी जैसे थे। मुझे अपने जीवन में जिस दूसरे मर्द से प्यार हुआ, वो पहले का ही बेटा था ।
मुझे बिलकुल भी इसमें कुछ भी गलत होने का एहसास नहीं लग रहा था। कर्मचारियों से चुदवाना एक पल को पाप लगता था, पर अपने बेटे के लंड को अपने चुत में लेने में मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शाम तक हम दोनों का ऐसा कोई इरादा नहीं था, ना ही हम दोनों की ऐसी कोई गलत नज़र थी एक दूसरे पे। प्यार आपको किस बात पे, किस पल हो जाए, पता ही नहीं चलता। इसीलिए एक कहावत है की प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है ।
मैं अपने बेटे के प्यार में थी। अब वो मेरे प्यार में था या नहीं, ये आने वाले भागों में जानेंगे।आने वाले भागों में और भी रोमांच है, मसाला है, थोड़ी बहुत मस्ती है, शरारत है। ये शुरुआत थी और बिलकुल ही अभूतपूर्व अनुभव था हम दोनों के लिए इसीलिए उन पलों में हमारा कोई नियंत्रण था नहीं। बस, बिना कुछ कहे होता चला गया ।




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