Previous Part : Dost ki Maa aur Behan ko Chodne ki Icha - 8
कितना समय लगता है.. हो सकता है तीस मिनट और लग जाएँ । मेरा मन उसकी यह बात सुनकर ख़ुशी में झूम उठा और मैंने मन ही मन खुश होकर विनोद से बोला- अरे कोई बात नहीं आराम से आओ वैसे भी आज का खाना मैं खा कर ही जाऊँगा.. इस तरह दो-अर्थी शब्दों में बाते करते हुए मैंने फोन रख दिया.तब तक माया आई और मेरे चेहरे के भावों से भांप गई कि विनोद लोग अभी और देर में आएंगे ।
वो मुझसे बोली- क्या बात है.. लगता है तुम्हें अब मन चाहा फल देना ही पड़ेगा.. तो मैंने भी उससे झूट बोलते हुए कहा- अभी उनको दो घंटे और लगेंगे.. उनकी ट्रेन शहर से दूर कहीं सिग्नल न मिलने के कारण खड़ी हो गई है.. अब अगर मैं ये कहता कि गाड़ी स्टेशन के आउटर पर खड़ी है.. तो शायद वो कुछ भी मन से न करती और डरते हुए चुदाई करने में वो मज़ा कहाँ.. जो पूरे इत्मीनान के साथ करने में मिलता है । खैर.. माया भी ख़ुशी से फूली न समाई और आकर मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठों को चूमने लगी ।
मैं भी उसे अपनी बाँहों में जकड़े हुए प्यार से चूमने-चाटने लगा और उसकी गर्दन पर जैसे ही चूमा.. वैसे ही उसके बालों से आ रही खुश्बू जो कि आज ही उसने धोए थे.. तो उसके बालों से आ रही खुश्बू से मैं मदहोश सा हो गया और उसे अपनी गोद में उठा कर उसे रूचि वाले बिस्तर पर लिटा दिया । अब मैं उसके भीगे बालों की खुशबू लेने लगा । उसके बाल भीगे होने से तकिया भी गीला होने लगा.. मैं उसे और वो मुझे बस पागलों की ही तरह चूमे-चाटे जा रहा था । फिर उसने मुझे ऊपर की ओर धकेला और मुझे नीचे लेटने को बोला ।
मैं कुछ समझ पाता.. उसके पहले ही उसने अपनी पैंटी निकाली और फिर मेरा लोअर हटा के वहीं पलंग के नीचे डाल दी और मेरे ऊपर आकर मेरी जांघों पर बैठते हुए अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी । मैं इतना बेताब हो गया कि बिना उसके खोले ही उसके चूचे नोचने-दबाने लगा । जिससे उसके मुँह से चीख निकल गई और बोली- यार दो मिनट रुक नहीं सकते । तो मैंने बोला- इतना मदहोश कर देती हो कि होश ही नहीं रहता ।
तभी माया ने ब्लाउज निकाल दिया और मेरे होंठों को चूसते हुए मेरा सर सहलाने लगी । फिर मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर ले जाकर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए सके चूतड़ों को रगड़ते हुए उन पर चाटें मारने लगा.. जिससे माया चिहुँक उठी । अब तो उसे भी मेरी इस अदा पर मज़ा आने लगा था और मेरे हर तरीके का मज़े से स्वागत करने लगी थी.. जैसे कि वो मेरी आदी हो चुकी हो । उधर मेरा लण्ड जो कि अब बेकरार हो चुका उसकी चूत से रगड़ खाते हुए उसकी चूत के मुहाने पर तन्नाते हुए अपना सर पटकने लगा था.. मानो कह रहा हो कि अब तुम लोगों का हो गया हो तो अब मेरी बारी आ गई है ।
तभी मुझे भी होश आया कि वो लोग कभी भी घर पहुँच सकते हैं.. तो मैंने धीरे से अपने हाथों से उसके मम्मे दबाने चालू किए.. जिससे माया की सीत्कार निकलने लगी । वो भी गर्म जोशी के साथ अपनी गर्दन उठा कर लहराती हुई जुल्फों से पानी की बूँदें टपकाती हुई ‘आआह.. उउउम्म्म्म और जोर से राहुल.. आआआह.. ऐसे ही करो.. आआअह..’ बोलने लगी । तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है । फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट करने लगा ।
तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’ से बैठ गई । चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी । यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया । उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई ।
जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़ और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया कि भी गति अब बढ़ चुकी थी । वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को अपने हाथों से सहला रही थी..जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता.. इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया ।
अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर सर टिका कर झुक गई । अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा । अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर- बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं.. जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं ।
उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को.. और कर दो ठंडा.. मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा गई । वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर- बेल बजे ही जा रही थी । मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ.. पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए बाथरूम में चला गया ।
जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई थी । वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही चिल्लाते हुए चली गई । ‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’ उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी ।
खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता । खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है ।
फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट करने लगा । तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’ से बैठ गई । चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी । यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया । उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई । जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़ और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया कि भी गति अब बढ़ चुकी थी ।
वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को अपने हाथों से सहला रही थी.. जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता.. इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया ।
अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर सर टिका कर झुक गई । अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा । अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर- बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं.. जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं ।
उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को.. और कर दो ठंडा.. मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा गई । वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर- बेल बजे ही जा रही थी । मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ.. पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए बाथरूम में चला गया ।
जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई थी । वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही चिल्लाते हुए चली गई । ‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’ उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी ।
खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता । खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है अब आगे बढ़ कर मैंने उससे बोला- तुम्हें क्या लग रहा है? तो वो मुझसे बोली- वही तो समझने की कोशिश कर रही हूँ कि मुझे क्यों सब कुछ गड़बड़ लग रहा है या फिर बात कुछ और है ?
तो मैंने उसे बोला- जो तुम्हें लग रहा है पहले वो बोलो.. फिर अगर सही होगा तो मैं ‘हाँ’ या ‘न’ में जवाब दूँगा और तुम गलत हुई.. तो मैं बता दूँगा.. पर ये बात मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी । मैं उस दिन बहुत डर गया था.. घबराहट के मारे मेरे माथे से पसीना बहने लगा था। पर जैसे ही उसकी बात सुनी तो मेरी जान में जान आई और मैंने सोचा इसे अपनी बात पूरी कर लेने दो फिर तो मैं इसे हैंडल कर लूँगा । मैं दरवाजा बंद करने लगा तो उसने कहा- ये क्यों किया तुमने? मैंने बोला- ताकि कोई यहाँ न आए.. फिर मैं उसी बिस्तर पर जाकर बैठ गया.. और उससे बोला- मेरे पास न सही.. पर चाहो तो सामने वाले बिस्तर पर बैठ जाओ.. नहीं तो थक जाओगी.. अभी तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं है ।
तो उसने मुँह बनाते हुए बोला- ज्यादा हमदर्दी दिखाने की कोशिश मत करो.. वो यह कहते हुए बैठ गई । फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा- अच्छा अब बोलो.. तुम क्या सोच रही थी ? मैंने उसके हाथ की ओर इशारा करते हुए पूछा.. जिसमें वो माया के रस से सनी चड्डी को पकड़े हुए थी । तो वो बोली- आप कितने गंदे हो.. मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि आप माँ के अंदरूनी कपड़ों को लेकर सोओगे और ये सब करोगे.. तो मैं समझ गया कि ये अभी नादान है.. इसे ज्यादा कुछ नहीं पता लगा । मैंने भी थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए बोला- क्या.. इस सबसे तुम्हारा क्या मतलब है ?
तो वो चड्डी में लगे हुए रस को छूते हुए बोली- ये.. तो मैंने पूछा- तुम्हें नहीं पता कि ये क्या है.. तो तुम मुझे गन्दा कैसे कह सकती हो ? मुझे पता चल गया था कि वो क्या कहना चाह रही थी.. पर उसके मुँह से सुनने के लिए मैंने उसे उकसाया.. तो वो बोली- बेवकूफ मत समझो मुझे.. आपको नहीं मालूम.. ये आपका स्पर्म है। मैंने अपनी सहेलियों से सुना है कि लड़कों का स्पर्म चिकना होता है.. और आपको मैं पहले दिन से नोटिस कर रही हूँ कि आप मेरी माँ को मौका पाकर छेड़ते रहते हैं और… तो मैंने बोला- और क्या ?
बोली- और.. अब तो हद ही हो गई.. आपने हम लोगों कीगैरहाज़िरी का फायदा उठाते हुए मेरी माँ पर गन्दी नज़र रखते हुए.. उनके अंडरगार्मेंट्स को अपने साथ लेकर सोने लगे और नजाने मन में क्या क्या करते होंगे.. जिससे आपका स्पर्म निकल जाता होगा..तो मैंने उससे बोला- तुम्हें पता है.. स्पर्म कैसे निकलता है ? बोली- हाँ.. गन्दा सोचने पर.. मैंने हंस कर बोला- उतनी देर से तुम भी तो मेरे बारे मैं गन्दा सोच रही हो.. तो क्या तुम्हारा भी ‘स्पर्म’ निकल रहा है ? वो तुनक कर बोली- अरे मेरे कहने का मतलब ऐसा नहीं है.. तो मैंने बोला- फिर कैसा है ? बोली- मैं अभी जाती हूँ.. और बाहर जाकर सबको बताती हूँ.. फिर वही तुम्हें समझा देंगे.. ये कह उठने सी लगी तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखे और उसे बैठने को कहा और बोला- पहले ठीक से हम समझ तो लें.. फिर जो मन में आए.. वो करना ।
तो बोली- नहीं.. अब मुझे कुछ नहीं समझना.. मैं आपको बहुत अच्छा समझती थी.. पर आप बिलकुल भी ठीक इंसान नहीं हो.. मैंने बोला- अभी सब समझा दूँगा.. पर पहले ये बताओ.. तुम मेरी किस सोच को गन्दा बोल रही थी.. जिससे स्पर्म निकल आया । तो वो कुछ हकलाते हुए सी बोली- मैं सब सब समझती हूँ.. अब मैं छोटी नहीं रही.. जो आप मुझे बेवकूफ बना लोगे.. आपसे सिर्फ दो ही साल छोटी हूँ । तो मैंने बोला- तुम्हें कुछ पता होता.. तो अब तक बता चुकी होतीं.. और ये क्या है मुझे भी नहीं मालूम। तो बोली- ज्यादा होशियारी मत दिखाओ.. जब मन में सेक्स करने के ख़याल आते हैं तो स्पर्म निकलता है और वही तुम करते थे । मैंने बोला- ऐसा नहीं है । तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ ।
तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया । तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं ? तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’ नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा । तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो ? तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा ।
तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं । फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी है.. वो बोली- हाँ तो? तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी । तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है.. वो बोली- फिर कैसा है ?
मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी… यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा ।
उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी मुझे अपना सकती हो ? तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी.. मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा । मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके बाहर की आवाज़ सुनने लगा ।
विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि वो यहीं होगा ? तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ । भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले । तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से थोड़ा नहा भी लिया था । मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा ?
तो बोली- अच्छा रहा..
वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा- यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए ।
तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया । तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग आ जाओ.. नाश्ता रेडी है । विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ ? वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ । मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था । मैंने बोला- ऐसा नहीं है । तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ ।
तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया ।
तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं ?
तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’ नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा ।
तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो ?
तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा । तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं । फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी है..
वो बोली- हाँ तो ?
तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी । तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है..
वो बोली- फिर कैसा है ?
मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी… यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा ।
उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी मुझे अपना सकती हो ? तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी.. मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा । मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके बाहर की आवाज़ सुनने लगा ।
विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि वो यहीं होगा ? तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ । भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले । तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से थोड़ा नहा भी लिया था । मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा ?
तो बोली- अच्छा रहा.. वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा- यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए ।
तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया ।
तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग आ जाओ.. नाश्ता रेडी है ।
विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ ?
वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ ।
मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था । तो मैं बिना बोले ही रूचि की आँखों में आँखे डालकर शांत होकर देखने लगा.. जिससे उसे ऐसा लगा.. जैसे मैं उससे ही पूछ रहा होऊँ कि मैं आऊँ या न आऊँ.. तब तक विनोद भी बोला- बोल न यार.. शाम को आ जा. पर अब भी मुझे शांत देख कर रूचि ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोली- क्यों न आप आज भी यहीं रुक जाएँ.. हम मिलकर मस्ती करेंगे और कल फिर आपको देर तक सोने को मिलेगा । सच बोलूँ तो यार उसकी ये बात सुन तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा ।
मेरी ख़ुशी को देखकर रूचि बोली- देखना माँ.. राहुल भैया जरूर मान जायेंगे.. क्योंकि लगता है.. उनको सोने का बहुत शौक है और ये शौक वो अपने घर में पूरा नहीं कर पाते हैं । तो विनोद बोला- हाँ यार.. चल अब जल्दी से ‘हाँ’ बोल दे.. सबकी जब यहीं इच्छा है.. तो तू आज रात यहीं रुक जा..तो मैंने भी बोला- चलो ठीक है.. जैसी आप लोगों की इच्छा.. पर मुझे अभी घर जाना ही होगा। फिर शाम तक आ जाऊँगा ।
मैं मन में सोचने लगा कि मैंने तो सोचा था कि अब आना ही कम हो जाएगा.. पर यहाँ तो खुद रूचि ही मुझे रुकने के लिए बोल रही है। ये मैं कैसे हाथ से जाने दूँ । इतने में रूचि बोली- अब क्या सोच रहे हो.. आप जल्दी से आप अपने घर होकर आओ । मैंने बोला- अब घर पर क्या बोलूँगा कि आज क्यों रुक रहा हूँ ? तो कोई कुछ बोलता.. उसके पहले ही रूचि बोली- अरे आप परेशान न हों.. मैं खुद ही आंटी जी को फ़ोन करूँगी । तो मैंने बोला- वो तो ठीक है.. पर बोलोगी क्या ?
तब उसने जो बोला उसे सुन कर तो मैं हैरान हो गया और मुझे ऐसा लगा कि ये तो माया से भी बड़ी चुदैल रंडी बनेगी । साली मेरे साथ नौटंकी कर रही थी। उसकी बात से केवल मैं ही हैरान नहीं था बल्कि बाकी माया और विनोद भी बहुत हैरान थे । उसने बोला ही कुछ ऐसा था कि आप अभी अपने घर जाओ और आंटी पूछें कि हम आए या नहीं.. तो आप बोलना मैं जब निकला था.. तब तक तो वो लोग नहीं आए थे और उनका फ़ोन भी स्विच ऑफ था..। फिर आप अपने काम में लग जाना.. जैसे आप सही कह रहे हों और फिर 6 बजे के आस-पास मैं ही आपकी माँ को काल करूँगी और उनसे बोलूँगी कि आंटी अगर भैया घर पर ही हों तो आप उनसे बोल दीजिएगा कि हम आज नहीं आ पा रहे हैं । हमारी ट्रेन कैंसिल हो गई है.. तो हम कल ही घर पहुँच पायेंगे.. मैं उस अभी सुन ही रहा था कि वो और आगे बोली- और हाँ.. वैसे कल की जगह परसों ज्यादा ठीक रहेगा और आपके साथ वक़्त बिताने के लिए दो दिन भी ठीक है न.. तो मैंने भी मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ बोला ।
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